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दिल से ग़ज़ल तक

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'ग़ज़ल मेरे अन्तर्मन की खामोश सरगोशी है

देवी नागरानी

कविता एक तजुर्बा है, एक ख़्वाब है, एक भाव है. जब मानव के अंतर्मन में मनोभावों का तहलका मचता है, मन डांवाडोल होता है या हलचल मचाती उफनती लहरें अपने बांध को उलांघ जाती है तब कविता बन जाती है। कविता अन्दर से बाहर की ओर बहने वाला निर्झर झरना है। सच ही तो है, दिल की कोई भी बात हो, कलम की धार से शीरीं ज़ुबान में नज़्म, दोहा, रुबाई, व ग़ज़ल बनकर सामने आती है।

ग़ज़ल क्या है? इस सिलसिले में अनेक स्वरों में, स्वरूपों में ग़ज़ल को पेश करते हुए परिभाषित किया गया है....इसपर और बहुत कुछ लिखा जा रहा है और कई संभावनाएँ और भी हैं ....। सच में ग़ज़ल एक प्यास है, जो अपने विस्तार में जाने कहाँ कहाँ खोजती है उस सुराब को, जो प्यास बुझाने का बायज बन जाए। वह तो फूल की पांखुरी में विकसित होती हुई कस्तूरी है जो हवाओं में घुलमिल कर विचरण करते हुए अपना परिचय आप देती है।

अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल
खुश्क होंठों की तिशनगी है ग़ज़ल

डॉ. कुँवर बेचैन के शब्दों में-"अनुभव की पगडंडी और विचारों के चौरास्तों पर की गई शब्द की पदयात्रा है। "ग़ज़ल की एक विशेषता यह भी है कि यह सिर्फ़ काव्य रचना अथवा काव्य शैली ही नहीं, बल्कि एक तहज़ीब भी है जो हिंदुस्तान और ईरान के लय से जन्मी है-आज के जमाने में गंगो-जामुनी तहज़ीब बन गई है।

इसी एहसास को साथ लिए मेरे प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह-'चरागे-दिल', 'दिल से दिल तक', 'लौ दर्दे-दिल की' और अब 'सहन-ए-दिल' अपने शब्दों की पदयात्रा करते हुए समय के साथ-साथ यात्रा तय कर रही है।

Formats

  • OverDrive Read
  • EPUB ebook

subjects

Languages

  • Hindi

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