हैदराबाद के उर्दू अदब में ग़ैर मादरीज़बाँ और एक अलग माहौल से ताल्लुक़ रखने वाली कम उम्र शायरा की हैसियत से १९८५ में अपना शेरी सफ़र शुरू किया। वालिदे महतरम मरहूम अंबाजी राव धरमकर साहब के मुक़्तलिफ़ मज़हबों और अदब से मरासिम रहे, जिस का असर घर के माहौल पर ऐसा पडा के मिली-झुली तहज़ीब में परवरिश हुई। उर्दू ज़ुबान कविता के लिए नई नहीं थी, लेकिन उर्दू में शायरी कर के उन्होंने अपने ख़ानदान और दोस्तों को हैरान कर दिया। उन्होंने अपना शायरी सफ़र मशहूरो-मारुफ़ शायर सलाउदीन तैय्यर साहब के ज़ेरे नज़र शुरू किया। पद्मक्षी जिलानी बनू साहिबा मशहूर अफ़सानानिगार और स्टोरी रैटर से कविता बहुत मतासिर रही, जिनसे उन के ख़ानदानी मरासिम रहे और वो पड़ौसी भी रहे।
राज बहादुर गौड़ साहब फ़्रिडम फ़ैटर और क्रिटिक उन के वालिद सहब के दोस्त थे, कविता की हौसला अफ़जाई करते थे जो अपने आप में एहम बात थी। फ़िल्मी दुनिया के मशहूर मौसेख़ार जवाब नवशाद अली साहब कविता किरण की किताबें पढ़ ने के बाद ख़त लिखा जो कविता किरण के लिए अंनमोल यादगार है।