तुम कौन हो? -एक बहरी आँख जो टकराव तो महसूस कर सकती है, पर उसका मतलब नहीं समझ सकती। हम कौन है? -एक अंतर्मन का दरिया जो दिन-ब-दिन सिकुड़ रहा है, और दरिया का खारापन समंदर को ही मार रहा है। मै कौन हु? -बहोत लोगोने काल से पूछा, ब्रम्हांड से पूछा, पर अस्तित्व का कोई जवाब नहीं आया। हम सभी इस अथांग सागर में भटक रहें हैं।
ये किताब शायद एक व्यर्थ, पर सार्थक कोशिश है, जिंदगी- उसका मतलब, अस्तित्व - एक सवाल, वक्त - उसका अपार बल, हम - एक समाज, मैं - एक इंसान, इन भावनाओं को टटोलने की।