यह मेरा पहला ही काव्य संग्रह है या यूँ कहूँ कि मेरा पहला साहस भरा कदम है। सोच तो मैं कई वर्षों से रहा था परंतु मेरी कल्पनाएं, मेरा यथार्थ, मेरी भावनाएं, मेरे उद्गार, मेरे भोगे हुए अतित, मेरे अनुभव, कुछ आपबीती, कुछ जगबीती, कुछ आदर्श, कुछ परामर्श ये सब के सब अब जाकर मुर्त रूप ग्रहण करने को है।
मै पहले कुछ भयभीत था, शायद अब भी हूँ। सफलता-असफलता का डर हर किसी के जेहन मे होता है। परंतु हर किसी के पास नहीं होता, वो है मेरे गुरु, मेरे शिक्षक, मेरे आचार्य श्री उमाशंकर जी का प्रोत्साहन और आशिर्वाद। उनकी छाया एक ऐसे वटवृक्ष के समान है जिसके साये तले मैं जीवन पर्यन्त रहना सहर्ष स्वीकार करुंगा। यूँ तो यह पुस्तक किसी और को समर्पित और उसी के नाम से है परंतु इसकी पहली कविता मेरे गुरु श्री उमा शंकर जी को समर्पित है।
दूसरी कविता मैंने अपनी माँ को समर्पित किया है। जिनका ज्ञान और संस्कार मुझे आज भी इंसान बने रहने की प्रेरणा देता है।
मैं विशेष रूप से आभारी हूँ अपने ज्येष्ठ भ्राताश्री सरोज कुमार जी का जिनके प्रयासों से यह पुस्तक आज धरातल पर आ रही है।
मैं आभारी हूँ उन सबों का भी जिनकी सहायता व प्रोत्साहन से मैं यह सब कर पाए रहा हूँ।