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Title details for कब्रों पर महल नहीं बनते by K. Singh - Available

कब्रों पर महल नहीं बनते

ebook

मैं मेरा पीछा करने वाले व्यक्ति से बचने के लिए अंधाधुंध भाग रहा था. मैंने पीछे मुड़कर देख लिया था के उसके हाथ में एक लंबा सा चमचमाता हुआ चाकू था. वो भी बहुत तेज़ दौड़ रहा था और हर क्षण मेरे नजदीक होता जा रहा था.

मैं पूरी तरह से अपने ही पसीने में नहाया हुआ था; मेरी सांस फूलने लगी थी; मुझे लगने लगा था के मैं ज्यादा दूर तक नहीं दौड़ सकूंगा; मैं किसी भी क्षण लड़खड़ाकर गिर सकता था. इतनी देर तक भागते रहने के कारण मैं बहुत अधिक थक चुका था. शारीरिक थकान के साथ साथ मेरा दिमाग भी कई चिंतित करने वाले प्रश्नो से भर गया था.

कुछ दूरी तक और दौड़ने के बाद मेरी टांगें मेरा साथ छोड़ने लगी और मैंने महसूस किया के अब अंत आ ही गया था. मैं तो गर्दन घुमा कर इधर उधर देखने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहा था. चारों तरफ अन्धेरा हो गया था.

Formats

  • OverDrive Read
  • EPUB ebook

Languages

  • Hindi