"अनकही" एक तरह से उस समय के समाज का आईना है, जब कई सारे अनकहे रिती रिवाज़ों से समाज अभी उभरा नही था। देश तरक्की की राह पर चल तो पड़ा था पर अभी उसके सही मायनों में विकसित होना बाकी था। रोमान्टिक पृष्ठभूमि पर आधारित ये उपन्यास समाज की विभिन्न समस्याओं की ओर पाठकों और सिस्टम का ध्यान खींचती है। ऐसे समाज में एक अनाथ लड़की अपनी काबिलीयत के बल पर, समाज में बराबरी का स्थान हासिल करने की कोशिश करती है। उसके जीवन में आते खट्टे-मीठे तीखे लम्हों का वह किस तरह सामना करती है वह इस कहानी का ताना बाना है, जो पाठकों को अनेक किरदारों से जोड़कर कहानी से संजोये रखती है। आंध्र प्रदेश और उसके गाँवों की समस्याओं के जरिए देश के अनेक गाँवों की समस्याओं को भी यहाँ उजागर किया है और गाँव वालों को आत्मनिर्भर होने का रास्ता भी बताया है। कई घुमावदार मरहलों से आगे बढ़ते हुए कहानी बड़े रोचक मुकाम पर पहुँचती है, जहाँ अब आगे क्या होगा? का सवालिया निशान खड़ा हो जाता है।
नवाब आरजू
(लेखक एवं गीतकार, मुंबई)