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Title details for Mahapralap by Pranendra Nath Misra - Available

Mahapralap

ebook

मनुष्य की भावनाएँ, मुख्यतः नौ रस से बनी होती हैं। इन रसों  में एक रस "करुण रस" है। इसे दया और भिक्षा का स्रोत माना जाता है। मूलतः यह करुणा का द्योतक है। "करुणा" यानि द्रवित करने की कला। कोई कला तभी कारगर होती है, जब  वह "रस" से सराबोर हो। करुण रस की सत्यता तभी प्रामाणिक होगी जब दृश्य मन को छूने वाले हों।  भाव, आत्मचिंतन के लिए झकझोर दें।  आत्मा पीड़ित महसूस करे।  मन को आत्मा की पीड़ा का आभास  हो और हृदय परिवर्तन हो जाये। एक भिखारी को देखकर हम द्रवित होते हैं। करुणा उपजती है।  कुछ  दान करके आगे बढ़ जाते हैं। फिर दुनिया में  तरह तरह के चित्र -विचित्र देख कर भिखारी को भूल जाते हैं। "करुण रस"  मिट जाता है। किन्तु, भिखारी के बाद लगातार कुछ ऐसा हो कि, कोई...

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