मैं.......
यानी अघोरानंद , 26 वर्ष का एक युवक, अपनी पत्नी माला की मृत्यु के बाद, गुरु के सानिध्य में अघोर साधना में प्रवृत्त होता है ।
जिसके बाद गुरुदेव मुझे
"अघोरानंद"
नाम देते है ।
मैं समाज को छोड़कर जाने के विषय में सोचता हूं, लेकिन गुरुदेव मुझे गृहस्थ में रहकर समाज के बीच कार्य करने का निर्देश देते हैं ...
जिसके बाद मैं वापस अपनी सरकारी नौकरी करते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ता हूँ ....
इसी क्रम में मुझे पश्चिम बंगाल के तारापीठ में जाकर तारा साधना करने का निर्देश मिलता है......
जिसके बाद मैं वहां जाकर तारा साधना संपन्न करता हूं । जिसमें मुझे विभिन्न अनुभूतियां होती हैं । तारा पुत्र बामाखेपा के दिव्य दर्शनों का सौभाग्य मिलता है । इसे आप पढ़ सकते हैं "अघोरानंद और तारापीठ की छाया मे" ....
तारापीठ में साधना के क्रम में ही एक युवा तंत्र साधिका छाया मेरे संपर्क में आती है । एक अन्य महिला साधिका रेणु माई मुझे चौसठ योगिनी मंदिर में ले जाकर विभिन्न प्रकार की साधना ओं का रहस्य समझाती है । उसी क्रम में योगिनी साधना भी संपन्न होती है । इसे आप पढ़ सकते हैं "अघोरानंद और चौसठ योगिनी मंदिर का रहस्य" मे ...
चौसठ योगिनी साधना संपन्न करके मैं वापस लौटता हूं तो मेरे मकान मालिक तथा गुरुभाई बनर्जी दादा मुझे शाबर मंत्र साधना से संबंधित एक किताब देते हैं । साथ ही मुझे गुरु गोरखनाथ के सानिध्य में उनके दिव्य पीठ में बैठकर कुछ मंत्र जाप करने के लिए निर्देशित करते हैं ।