अपने गुरु के निर्देशानुसार मैं देवी जगदम्बा के विराट स्वरूप दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या भगवती तारा के शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल स्थित रामपुर में तारा साधना करने के लिए पहुंचा ।
वहां पहुंचने के बाद मुझे अपने अग्रज भाई बनर्जी दादा के घर में रुकने का अवसर मिला । मैंने तारापीठ के श्मशान में 8 दिनों तक तारा साधना संपन्न की । उसमें विविध प्रकार के अनुभव मुझे प्राप्त हुए । भगवती तारा के सर्वश्रेष्ठ साधक महाप्रभु बामाखेपा के दर्शन का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ | साधना के अंत में स्वयं महामाया ने अपने जाज्वल्यमान स्वरूप में मुझे दर्शन दे कर अनुग्रहित किया | इसको आप मेरी पहले की कथा अघोरानंद और तारापीठ की छाया में पढ़ सकते हैं ।
तारा साधना संपूर्ण होने के बाद मैं समीप ही स्थित एक चौसठ योगिनी मंदिर में पहुंचा ....
जहां पर मुझे हत्था जोड़ी पर एक विशेष साधना करने का अवसर प्राप्त हुआ । साथ ही भगवान उन्मत्त भैरव के विशिष्ट दिव्य साधना क्षेत्र में युगल साधना करने का अवसर भी प्राप्त हुआ । जिसके द्वारा मैंने चौसठ योगिनी की कृपा प्राप्त की । इस सारे प्रकरण में एक महिला साधु रेणु माई ने मेरा मार्गदर्शन किया । उन्होंने मुझे एक गोपनीय मंत्र भी प्रदान किया । जिसके द्वारा मैं किसी भी चौसठ योगिनी मंदिर के साधनात्मक प्रखंड में प्रवेश करके साधनाएं कर सकता था ।