किसी भी मंज़िल की बुलन्दी पर पहुँचने से पहले हम उसके ख़्वाब बुनते हैं। उन ख़्वाबों के बिना पर हम उस मंज़िल तक पहुँचने की कोशिश में लग जाते हैं। बिना ख़्वाब किसी मंज़िल को पाना बहुत मुश्किल सा लगता है। जब हम ख़्वाब देखते हैं तो उसकी एक सीमा तय कर देते हैं। हम मान लेते हैं कि हम बस इतना ही कर सकते हैं। यही सीमा हमें अधिक आगे बढ़ने से रोक देती है।
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ओपन माइंडस(Open Minds), बरेली के संस्थापक, युवा हिन्दी लेखक सिद्धार्थ कृष्ण बख्शी जिला बरेली, उ.प्र. के क़स्बा सिरौली से ताल्लुक रखते हैं। सिद्धार्थ जी ने तीर्थांकर महावीर विश्वविद्यालय से ब्रांड प्रबन्धन एवं संचार में स्नातक(BBA) तथा अर्थशास्त्र में परास्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है। वर्तमान में सिद्धार्थ जी अपने...