नेहरू जी खुशफहमी मे थे कि युद्ध नहीं होगा इसलिए भारत ने सैनिकों की सिर्फ दो टुकड़ियों को तैनात किया , जबकि चीन की वहां तीन रेजिमेंट्स तैनात थीं।
इन सब परिस्थितियों के बीच 20 अक्तूबर सन् 1962 में चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने लद्दाख पर और नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) में मैकमोहन लाइन के पार हमला कर दिया ।
युद्ध प्रारम्भ हो गया ।
सैनिक क्षमता में हम चीन से काफी पीछे थे इसलिए हमारी स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही थी । ऐसा लग रहा था जैसे हम वह युद्ध हार जाएंगे । हमारी सेना को अलग-अलग मोर्चों पर कड़ी मार झेलनी पड़ रही थी । जिसके चलते सेना का मनोबल भी कमजोर पड़ता जा रहा था । यह परिस्थिति देश के लिए बेहद घातक हो सकती थी ।
आप लोग जानते होंगे कि चीन एक कम्युनिस्ट देश है ।
भारत के सबसे प्रमुख हितेषी माने जाने वाले सोवियत रूस में भी कम्युनिस्ट विचारधारा ही स्वीकार की जाती थी । इस विचारधारा के चलते भारत के मित्र सोवियत यूनियन ने अपना रुख बदलते हुए चीन का समर्थन कर दिया था और कहा था कि मैकमोहन लाइन ब्रिटिश साम्राज्यवाद का खतरनाक परिणाम है।
इससे भारत की स्थिति काफी मुश्किल हो चुकी थी और इस युद्ध का परिणाम क्या होगा यह चिंता सभी को खाए जा रही थी ।
ऐसा कहा जाता है कि तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा । उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले । स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक 51 कुंडीय महायज्ञ करने की बात कही।
यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया।
भगवती महाविद्या बगलामुखी की कृपा से यज्ञ के नौंवे दिन 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है ।
चीन ने युद्ध क्यों रोका ?
इसका कोई भी स्पष्ट कारण आज तक कोई भी न जान पाया है और ना ही बता पाया है ।
ग्यारहवें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं ।
इसके पीछे क्या रहस्य था ?
अचानक यह युद्ध क्यों रुका ?
चीन ने अपनी सेनाएं क्यों वापस बुलाई ?
यह अपने आप में एक अद्भुत अविश्वसनीय और रहस्यमय घटना थी ।
उसके पीछे स्वामी जी महाराज के द्वारा किया गया अनुष्ठान माना जाता है ॥
भगवती महाविद्या बगलामुखी के शत्रु स्तंभन का यह सबसे विराट और अद्भुत प्रमाण था !
जिसकी दुनिया साक्षी थी .......
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