अखिलेश तिवारी ग़ज़ल की दुनिया का एक सुपरिचित नाम है। और कितने आसमां के नाम से प्रकाशित इनकी ग़ज़लों की यह बहुप्रतीक्षित किताब है। किताब में यथार्थ की खुरदुरी ज़मीन पर ज़िन्दगी के विविध रंगों से अक्कासी की गई है। ग़ज़लों के साथ नज़्मों, क़तों और दोहों को भी इसमें जगह दी गई है। पुस्तक की संक्षिप्त किंतु प्रभावशाली भूमिका में एक जगह अखिलेश तिवारी लिखते हैं: अस्ल में ग़ज़ल की अपनी एक शब्दावली है जिसमें कुछ शब्द बड़ा कूट अर्थ लिए होते हैं। मज़ा तो जब है कि ये अर्थ पढ़ने, सुनने वाले की क्षमता, अनुभव और मनोदशा के अनुरूप उस पर सामर्थ्य भर खुलें पर खुलें अवश्य। बंद लिफ़ाफ़े से बेरंग न लौट आएं।फिर ग़ज़ल का जहां तक सवाल है, शेरों का भविष्य क्या होगा कुछ पता नहीं।सामान्य से लगने वाले मिसरे कई बार इतना अंडर करंट लिए होते हैं कि उनकी चमक और रोशनी या कहें ऊष्मा सहज ही अपनी गिरफ़्त में ले लेती है। अच्छा शेर कई बार काविशों के बोझ से दबकर हांफने लगता है।
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